लंबी रहो मैं पिछे का नजारा धुंधला पड़ जाता है।
न जाने कब कोई अपना बिछड़ जाता है।
मत सोच की क्या हुआ है और क्या होगा।
ये वक़्त है राही बस युही निकल जाता है।।
कई मोड़ पर कोई बेगाना फिर अपना बन जाता है।
राहो मैं पड़े पत्थरो पर भी फूल खिल जाता है।
ये वक़्त है राही बस युही निकल जाता है।।
ओर
कई परिंदे अपनी रहो मैं अपना घर छोड़ जाते है।
उन पर फिर कोई राही अपना आशियाना बना जाता है।
बेखबर इस बात से कोई इस आशियाने को तन्हा छोड़ जाता है।
ये वक़्त है राही बस युही निकल जाता है।।
ओर
अक्सर
इस वक़्त के साथ इंसान भी बदल जाता है।।।